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वेद पुराणों में सूर्य भगवान के बारे में ऐसा माना जाता है कि सूर्य भगवान साक्षात रूप में भगवान का अवतार है.
आदित्य हृदय स्त्रोत को वाल्मीकि रामायण के युद्ध कांड का 105 वां सर्ग है भगवान श्रीराम को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए अगस्त ऋषि ने इस स्त्रोत्र का वर्णन किया था.

भगवान श्रीराम सूर्यवंशी तो थे लेकिन सूर्य भगवान की अत्यधिक कृपा प्राप्त करने के लिए उनको युद्ध में विजय दिलाने के लिए और रावण जैसे शत्रु को हराने के लिए मैं ऋषि अगस्त ऋषि द्वारा उन्हें आदित्य हृदय स्त्रोत्र बताया गया.

सूर्य के समान तेज प्राप्त करने के लिए सम्मान बढ़ाने के लिए चमक पाने के लिए और किसी भी प्रकार के कोट कचहरी जैसे मामलों से बचने के लिए या उनमें उलझी हो तो बचने के लिए और किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य की समस्या होने पर या मान सम्मान की समस्या होने पर उसके निवारण के लिए,सभी प्रकार के ऋण और कर्जे से मुक्ति आदित्य हृदय स्त्रोत अत्यंत लाभकारी है.


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             -:आदित्य हृदय स्तोत्र:-
             
           आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी अनुवाद सहित


 

विनियोग:-

ॐ अस्य
आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुपछन्दः
आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मादेवता
निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र
जयसिद्धौ च विनियोगः ।

       
              ||ऋष्यादिन्यास||

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुपछन्दसे नमः, मुखे।
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः हृदि।
ॐ बीजाय नमः, गुह्यो। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयो। ॐ
तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः नाभौ।
       
           ||करन्यास||

ॐ रश्मिमते अगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः ।
ॐ देवासुरनमस्कृतायमध्यमाभ्यां नमः।
ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां
नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः ।

        ।।हृदयादि अंगन्यास।।

ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा।
ॐ देवासुरनमस्कृतायशिखायै वषट्।
ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट् ।
ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्।
इस प्रकार न्यास करके निम्नाङ्कित मन्त्रसे भगवान् सूर्यका
ध्यान एवं नमस्कार करना चाहिये-
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः
प्रचोदयात् ।
तत्पश्चात् 'आदित्यहृदय' स्तोत्रका पाठ करना चाहिये।

     ||  ।।सूर्यका ध्यान।।||
  
रक्ताम्बुजासनमशेषगुणैकसिन्धुं
भानुं समस्तजगतामधिपंभजामि ।
पद्मद्वयाभयवरान् दधतं कराब्जै-
माणिक्यमौलिमरुणाङ्गरुचिं त्रिनेत्रम् ।।

              ||आदित्यहृदय स्तोत्र|| 
          
        
ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।
रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्।।१।।

हिंदी अनुवाद:-उधर श्रीरामचन्द्रजी युद्ध से थककर चिन्ता करते हुए रणभूमि में
खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिये उनके सामने उपस्थित हो गया।


दैवतेश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।
उपगम्याब्रवीद राममगस्त्यो भगवांस्तदा।।२।।

हिंदी अनुवाद:-यह देख भगवान् अगस्त्य मुनि जो देवताओं के साथ युद्ध
के लिये आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।
देखने


 राम राम महाबाहो श्रुणु गुह्यं सनातनम् ।
येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे ।। ३ ।।

हिंदी अनुवाद:-मुनि ने कहा हे सबके ह्रदय में रमण करनेवाले महाबाहो राम ,
यह सनातन रमणीय गोपनीय स्तोत्र सुनो।
वत्स इसके जाप से तुम युद्ध में अपने समस्त
शत्रुओ पर विजय पाओगे इसमें संदेह नहीं है

आदित्यहृदयँ पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम् ।
जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् ।। ४ ।।

सर्वमङ्गलमांगल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
चिंताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ।। ५ ।।

हिंदी अनुवाद:-इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है
"आदित्यहृदयस्तोत्र " |
यह परम पवित्र और शत्रुओ का विनाश करनेवाला है।
इसके जाप से सदा विजय प्राप्त होती है।
यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय है । सम्पूर्ण मंगलो का भी मंगल है।
इस स्तोत्र के पाठ से सभी पापो का विनाश होता है।
यह चिंता और शोक को मिटाने वाला और आयु को बढ़ानेवाला है।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं
समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम् ।
पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् ।।६।।

हिंदी अनुवाद:-' सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित
(रश्मिमान्) हैं । ये नित्य उदय होनेवाले (समुद्यन्), देवता
और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभाका
विस्तार करनेवाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर)
हैं । तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः,
देवासुरनमस्कृताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः,
भुवनेश्वराय नमः इन नाम-मंत्रोंके द्वारा) पूजन करो।'


सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः ।
एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः ।। ७ ।

हिंदी अनुवाद:-सम्पूर्णदेवता इन्ही के स्वरुप है।
ये तेजो की राशि तथा अपनी किरणों से
जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करनेवाले है।
येही अपनी रश्मियों का
प्रसार करके देवता और असुरो सहित
सम्पूर्ण लोको का पालन करते है।

  एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः ।
महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपांपतिः ।। ८ ।।
पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः ।
वायुर्वन्हिः प्रजाः प्राणः ऋतुकर्ता प्रभाकरः ।। ९ ।।

हिंदी अनुवाद:-'येही ब्रह्मा, विष्णु, स्कन्द,प्रजापति,इन्द्र,कुबेर
काल,यम,चन्द्रमा,वरुण,पितर,वसु साध्य
अश्विनीकुमार,मरुद्गण,मनु,वायु,अग्नि,प्रजा
प्राण,ऋतुओ को प्रकट करनेवाले तथा प्रभा के तेजोमय पुंज है।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान् ।
सुवर्णसदृशो भानुहिरण्यरेता दिवाकरः ।। १० ।।
हरिदश्वः सहस्त्रार्चिः सप्तसप्तिमरीचिमान् ।
तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् । । ११ ।।
हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहस्करो रविः ।
अग्निगर्भोदितेः पुत्रः शंखः शिशिरनाशनः ।। १२ ।।
व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः ।
घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः ।। १३ ।।
आतपी मण्डली मृत्युः पिंगलः सर्वतापनः ।
कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः ।। १४ ।।
नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः ।
तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तुते ।। १५ ।।


  हिंदी अनुवाद:-इन्ही के नाम आदित्य- अदितीपुत्र,सविता-जगतोत्पत्ति करने वाले,
खग-आकाश विचरण करनेवाले,पूषा-पुष्टिदायक,गभस्तिमान-प्रकाशमान
सुवर्णसदृश,भानु-प्रकाशक,हिरण्यरेता-ब्रह्माण्ड उत्पत्ति करनेवाले
दिवाकर-अंधकार को दूर कर उजाला देनेवाले
हरिदश्व-हरे रंग के घोड़ेवाले,सहस्रार्चि-हजारो किरणों से सुशोभित
सप्तसप्ति-सातघोडोवाले,मरिचिमान-किरणों से सुशोभित
तिमिरोन्मथन-अंधकार का नाश करनेवाले,शंभु-कल्याणकारक
त्वष्टा-जगत का संहार करनेवाले,मार्तन्डक-जीवन प्रदान करनेवाले
अंशुमान-किरण ग्रहण करनेवाले,हिरण्यगर्भ-ब्रह्माजी

शिशिर-सुखदेनेवाले,तपन-उष्णता पैदा करनेवाले
अहस्कर-दिनकर,रवि-प्रार्थना योग्य,अग्निगर्भ-अग्नि को गर्भ में धारण करनेवाले
अदितीपुत्र,शंख-व्यापक,शिशिरनाशन-शीत का नाशन करनेवाले
व्योमनाथ-आकाश के देवता,तमोभेदी-अंधकार को नष्ट करनेवाले
घनवृष्टि-घनी वृष्टि के कारण,अपां मित्र-जल को उत्पन्न करनेवाले
विन्ध्यवीथीप्लवङ्गम-आकाश में तीव्रवेग से चलने वाले
आतपी-घाम उतपन्न करनेवाले,मण्डली-समूह को धारण करनेवाले
मृत्यु-मौत के कारक,पिंगल-भूरे रंग वाले
सर्वतापन-सबको ताप देनेवाले,कवि-दूरद्रष्टा
विश्व-सर्वस्वरूप,महातेजस्वी-महान तेजवाले (सबसे ज्यादा तेजवाले)
रक्त-लाल,सर्वभवोद्भव-सब की उत्पत्ति के कारक नक्षत्रादि के स्वामी)
विश्वभावन-जगत की रक्षा करनेवाले,द्वादशात्मा-बारह स्वरूपों से युक्त
( ये महातेजस्वी नामो से सूर्यदेव प्रसिद्ध है ) आपको नमस्कार है

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः ।
ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः ।। १६ ।।

हिंदी अनुवाद:-पूर्वगिरि यानी उदयाचल और पश्चिमगिरि यानी अस्ताचल
के रूप में आपको नमस्कार है। ग्रहो और तारो के स्वामी
तथा दिन के अधिपति आपको नमस्कार है ।

नमः उग्राय वीराय सारंगाय नमो नमः ।
नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोस्तुते ।। १८ ।।

हिंदी अनुवाद:-उग्र,वीर,और सारंग सूर्यदेव आपको नमस्कार है।
कमलो को अपना तेज देकर विकसित करनेवाले मार्तण्ड आपको नमस्कार है।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सुरायादित्यवर्चसे ।
भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः। । १९ ।।

हिंदी अनुवाद:-आप ब्रह्मा, विष्णु और शिव के स्वामी है (परात्पर रूप में )
सुर
आपकी संज्ञा है,ये पूरा सूर्यमण्डल आपका स्वरुप है।
सबको स्वाहा कर देनेवाले अग्नि भी आपका ही रूप है।
आप रौद्ररूप धारण करनेवाले है, आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।
कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः ।। २० ।।

हिंदी अनुवाद:-अज्ञान और अंधकार के आप नाशक हो,जड़ता और शीतलता के कारक हो
शत्रु का विनाश करने वाले हो आप, आपका स्वरुप अप्रमेय है।
आप क्रुतग्नो का नाशकरने वाले हो,आप देव स्वरुप आपको नमस्कार है।

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे ।
नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे।। २१ ।।

हिंदी अनुवाद:-आप तपाये हुये सोने की तरह हो,आप हरि और विश्वकर्मा हो,
तम के नाशक,प्रकाशस्वरूप जगत के साक्षी हो,
आपको नमस्कार है।

नाशयत्येष वै भूतं तमेव सृजति प्रभुः ।
पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः ।। २२ ।।

हिंदी अनुवाद:-भगवन सूर्य ही सम्पूर्ण भूतो का संहार करने वाले है पालन करने वाले है।
सूर्य ही अपनी गर्मी से अपनी किरणों द्वारा वर्षा करते है।

एषु सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः ।
एष चैवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् ।। २३ ।।

हिंदी अनुवाद:-ये भगवान् सबके सो जाने के उपरांत भी जागते रहते है,
यही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री को मिलने वाले देवता है।


देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च ।
यानी कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः ।। २४।

हिंदी अनुवाद:-देवता,यज्ञ और यज्ञो के फल प्रदान करनेवाले भी यही है,
सम्पूर्ण जगत में होने वाली क्रियाओ के फल देने वाले यही है ।

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु च ।
कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव ।। २५ ।।

हिंदी अनुवाद:-राघव,विपत्ति में,कष्ट में,दुर्गम में,तथा किसी भी प्रकार के भय के अवसर पर
जो कोई भी मनुष्य इस सूर्यदेव के स्तोत्र का कीर्तन करता है
उसे दुःख नहीं भोगना  उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता|

पूजयस्वैन मेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम् ।
एतत् त्रिगुणीतं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यति ।। २६ ।।

हिंदी अनुवाद:-इसलिए तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो।
इस आदित्य ह्रदय का तीन बार पाठ करने से तुम युद्ध में विजय प्राप्त करोगे।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि ।
एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम स यथागतम् ।। २७ ।।

हिंदी अनुवाद:-महाबाहो राम तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे।
यह कहकर अगस्त्य मुनि वहा से चले गये।

एतच्छुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा।
धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् ।। २८ ।।

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेद पर हर्षमवाप्तवान् ।
निराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् ।। २९।।

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थे समुपागमत्।
सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत्।। ३० ।।

हिंदी अनुवाद:-अगस्त्य मुनि का उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचंद्र जी का शोक दूर हो गया।
उन्होंने प्रसन्नचित्त से आदित्यहृदय का पाठ किया स्तोत्र को धारण किया और तीन बार
आचमन करके जाप किया।
उसके बाद भगवान् श्री रामचंद्र ने धनुष उठाकर रावण की और देखा
और उत्साह पूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़ने लगे।
उन्होंने पूरा निश्चय कर रावण का वध करने को उद्यत हुए।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य राम
मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः ।
निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा
सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति ।। ३१ ।।

हिंदी अनुवाद:-उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर
श्रीरामचन्द्रजी की और देखा और
निशचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर
हर्षपूर्वक कहा रघुनन्दन।
अब जल्दी करो।



    आदित्य हृदय स्तोत्र पूजा विधि(aditya hridaya stotra in hindi language)

 1. सबसे पहले आचमन करना है इसके बाद चम्मच में या हाथ में जल लेकर इसका विनियोग पढ़ना है विनियोग पढ़ने के बाद उस जल को एक पात्र में छोड़ देंगे इसके बाद न्यास करेंगे

2. ऋष्यादिन्यास
ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। (सिर को स्पर्श करें)
अनुष्टुप्छन्दसे नमः, मुखे। (मुख को स्पर्श करें)
आदित्यहृदयभूतब्रह्मदेवतायै नमः, हृदि। (हृदय को स्पर्श करें
ॐ बीजाय नमः, गुहो। ॐ रश्मिमते शक्तये नमः। पादयोः (पैर
को स्पर्श करें)। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नम
नाभी (नाभि को स्पर्श करें)।

ॐ रश्मिमते अङ्गष्ठाभ्यां नमः|(अपने हाथ की दोनों अंगूठा स्पर्श करेंगे)
। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः|(दोनों हाथ की तर्जनी उंगली को स्पर्श करेंगे)।
 ॐ
देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभयां नमः।(दोनों हाथ की  मध्य उंगली को स्पर्श करेंगे)

 ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां
नमः(दोनों हाथ की अनामिका उंगली को स्पर्श करेंगे)

। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः(दोनों हाथ की  उंगली को कनिष्ठिका स्पर्श करेंगे)


। ॐ भुवनेश्वराय
करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।(  तल और प्रश्न भाग स्पर्श करेंगे)
             
            ।।हृदयादि अंगन्यास।।

      ॐ रश्मिमते हृदयाय नमः (हृदय को स्पर्श करेंगे)

। ॐ समुद्यते शिरसे स्वाहा।(सिर्फ स्पर्श करेंगे)


ॐ देवासुरनमस्कृतायशिखायै वषट्।(शिखा को स्पर्श करेंगे)

ॐ विवस्वते कवचाय हुम्। दोनों भुजाओं को स्पर्श करेंगे

 ॐ भास्कराय नेत्रत्रयाय वौषट् । दोनों नेत्रओं को स्पर्श करेंगे

ॐ भुवनेश्वराय अस्त्राय फट्। (अपने हाथ को सिर पर घुमा कर ताली बजा कर)

इसके बाद गायत्री मंत्र का जाप करें

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः
प्रचोदयात् ।
तत्पश्चात् 'आदित्यहृदय' स्तोत्रका पाठ करना चाहिये।

इसके बाद आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करेंगे


आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ के नियम(aditya hridaya stotra in hindi language)


 1.आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ रविवार को सुबह उषाकाल में करना चाहिए.और यदि आप इसका पाठ सुबह उषाकाल के समय नहीं कर पाते हैं तो  सूर्योदय के समय कर सकते हैं.

2.इसका पाठ करने से पूर्व सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर सूर्य को आर्ग देना चाहिए

3. अगला नियम कुछ इस प्रकार है कि आपको इसका पार्ट सूर्य के समक्ष ही करना चाहिए.

4.  अगला नियम कुछ इस प्रकार है कि पाठ करने के पश्चात सूर्य का ध्यान करना चाहिए.


5. जो लोग आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करते हैं उनको मदिरा और गर्स्ट भोजन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए और नॉन वेजिटेरियन नहीं खाना चाहिए.

6. अगला नियम कुछ इस प्रकार है कि सूर्यास्त के बाद नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए.


:- जो व्यक्ति आदित्य ह्रदय स्त्रोत का पाठ करते हैं वह विशेष रूप से नमक का प्रयोग नहीं करें और पाठ को समाप्त करने के बाद आप लाल चंदन की माला से गायत्री मंत्र का जाप करना है इससे शीघ्र ही फल की प्राप्ति होती है -:

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे(aditya hridaya stotra benefits in hindi)

आदित्य हृदय स्त्रोत पाठ को पढ़ने से जीवन से सारा अंधकार दूर हो जाता है

ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ नियमित रूप से करता है उसके जीवन में कभी   निराशा प्रवेश नहीं करती और वह सभी प्रकार की कठिनाईयों का सामना हस्ते हस्ते कर लेता.

आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ पढ़ने से व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है और व्यक्ति सूर्य के समान तेजस्वी हो जाता है और सफलता हासिल करने के कई रास्ते खुल जाते हैं

वैसे तो इसे स्त्रोत का पाठ हर रविवार को करना चाहिए क्योंकि इस स्त्रोत्र के पाठ के अध्ययन से सभी प्रकार की कठिनाइयां दूर हो जाती हैं यह शास्त्रों में एक अद्भुत स्त्रोत माना जाता है

किन-किन लोगों को आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करना चाहिए:::-


1.आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ सबसे ज्यादा लाभकारी रहता है कि यदि आपकी राज्य पक्षी से पीड़ा चल रही हो या कोई सरकारी मुकदमा चल रहा हो.

2. किसी भी प्रकार के रोग से ग्रस्त होने पर जिसका निवारण मुश्किल हो खासकर की आंख और हड्डियों के रोग से संबंधित.

3. आपके और आपके पिता के संबंध अच्छे ना होने पर बात बात पर पिता से बिगड़ जाती हो ऐसी स्थिति में आदित्य हृदय स्त्रोत बेहद ही लाभकारी है.

4 आंखों से संबंधित किसी भी प्रकार की समस्या जैसे आंखों से दिखाई ना देना कम उम्र में आंखों पर चश्मा लग जाना घर से बाहर जाते समय धूप में आंखों में कुछ दिखाई नहीं देता.

5. जीवन के किसी भी कार्य में आप बड़े से बड़े कार में सफलता पाना चाहते हो एक ही बार में, ऐसा माना जाता है कि किसी भी कार्य को प्रारंभ करने से पहले उसने आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किया जाए तो लाभकारी सिद्ध होता है

6 जो लोग प्रशासनिक अधिकारी की तैयारी करते हैं और वे चाहते हैं कि एक ही बार में उसमें सफलता प्राप्त हो जाए जैसे आईएएस किसी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रही हो तो आप मन से विधिपूर्वक आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करोगे तो लाभ प्राप्त होगा.

आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ किन किन राशि वालों के लिए सर्वाधिक लाभकारी है(aditya hridaya stotra in hindi language)::-

 मेष राशि वालों के लिए इसका पाठ शिक्षा के लिए अति उत्तम माना जाता है.

सिंह राशि वालों के लिए स्वास्थ्य के लिए अति उत्तम माना जाता है.

धनु राशि वालों के लिए इस का पाठ करना उत्तम तब होता है भाग्य का साथ चाहते हैं अर्थात जब वह कोई ऐसा कार्य कर रहे हो कि उन्हें भाग्य की सख्त जरूरत पड़ जाती है

वृषभ राशि वालों के लिए जब यह महत्वपूर्ण साबित होता है जब वह संपत्ति से संबंधित कोई कार्य करते हैं मतलब जिसका उद्देश्य संपत्ति प्राप्त करना हो.

कन्या राशि वालों के लिए जब है नौकरी पाना चाहते हो.

मकर राशि वालों को यदि लंबी आयु चाहिए है यह स्वस्थ जीवन चाहिए स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं


मिथुन राशि तुला राशि और कुंभ राशि वालों को वैवाहिक जीवन और स्वास्थ्य के लिए इसका पाठ करना आवश्यक करना चाहिए


कर्क राशि मीन राशि और वृश्चिक राशि वालों के लिए जब अधिक फलदाई साबित होता है कि उच्च पद की प्राप्ति करना चाहते हैं.


द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्रम्.   12 ज्योतिर्लिंगों का फल एक ही है 

      
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आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ दिए गए मंत्रों से करने पर दी गई विधि से करने पर लाभ की प्राप्ति होती है मैं आशा करता हूं कि मेरा लिखा हुआ लेख आपको पसंद आया है अगर किसी भी प्रकार की कोई त्रुटि हो तो क्षमा कर कमेंट कर कर बताएं


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